Wednesday, October 22, 2008

आज तो छोड़ो राज को

आज देश ने इतनी बड़ी सफलता हासिल की लेकिन टीवी पर आज भी राज की गुंडा गर्दी छाई हुई है। पता नहीं मीडिया वाले क्यों कुछ गुंडा टाइप लोगों को हीरो बनाने पर तुला है। मीडिया वाले दिखाना बंदकर दे तो काफ़ी कुछ कंट्रोल तो अपने आप लग जाए।

आख़िर क्यों झेल रहे हैं हम यह गुंडा राज

मुंबई मैं जो कुछ हो रहा है उसे देख कर दिमाग मैं एक ही सवाल उठता है की आख़िर क्यों झेल रहे हैं हम यह गुंडा राज, क्या सिर्फ़ इसलिए की इस देश के लोग कुछ लोकतान्त्रिक विचारों मैं यकीन रखते हैं। आख़िर कब तक चाँद मुट्ठी भर लोग किसी भी शहर को अपनी जागीर मानते रहेंगे। क्या महाराष्ट्र एक दिन भी दुसरे प्रदेशों से आए लोगों के बिना चल सकेगा। और सिर्फ़ महाराष्ट्र ही क्यों देश के किसी भी हिस्से मैं कोई भी किसी को भी जाने या काम करने या रहने से आख़िर कैसे रोक सकता है। यह एक बिल्कुल नायेकिस्म का पृथकतावाद है जिसमे इस देश का हिस्सा रहते हुए ही एक प्रदेश वहां की हर चीज़ पर अपना अधिकार चाहता है। दुःख की बात यह है की यह आवाज़ मुंबई जैसे शहर से उठी है जहाँ की संस्कृति और आबो हवा मैं बरसों से जय मराठा का भाव भले ही हो, लेकिन लोगों के बर्ताव मैं सब को साथ लेकर चलने की भावना रही है। इस नए किस्म के पृथकतावाद पर समय रहते काबू नहीं पाया गया तो यह आग देश के दुसरे हिस्सों मैं भी पहुँच सकती है। देश के संघीय ढाँचे और अलग पहचान केनाम पर इस तरह की अराजकता को बर्दाश्त नहीं किया जाना chaहिये।

Wednesday, October 15, 2008

यूँ ही चले जाना नौकरी का

हीर मंदी ने वो कर ही दिया जिसके बारे मैं कोई बात करना ही नहीं चाहता था। देश की दो बड़ी कम्पनियों ने अपने ढाई हजार लोगों को नौकरी से निकल दिया। ये वो कंपनियां हैं जिनमे नौकरी मिलना सुखद भविष्य की गारंटी माना जा रहःथा। नौकरी पाने वाले नौजवानों ने सोच भी नहीं होगा की दुनिया भर की मंदी उन पर गाज बन कर गिरेगीरिलायंस फ्रेश मैं लोगों को जरुरत नहीं होने के बावजूद सामान खरीदने का लालच देते नौजवानों ने सोचा भी नहीं होगा की एक दिन इनकी नौकरी यूँ ही चली जायगी। आख़िर तेजी से चढ़ते सेंसेक्स ने माहौल ही ऐसा बना दिया था की कोई बुरा सोचना ही नहीं चाहता था। सपनों की एक ऐसा संसार रच दिया गया की जहाँ सब कुछ चमकीला था। यह झटका एक सबक है। सबक वाही बरसों पुराना की हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती। यह तो शुक्र है की नौकरी खोने वाले अभी जयादा उम्र के नहीं है। हिम्मत नहीं हारेंगे तो तो अभी भी बहुत कुछ कर लेंगे। जरुरत इस बात की है की फ़िर ऐसे ही किसी चमक से चुंधिया न जाएँ। जहाँ तक बाकी लोगों कई सवाल है उनके सामने समस्या यह है की विकल्प ही नहीं है सिवा इसके की एक बार तो उन्हें इस फेर मैं फसना ही पड़ेगा। सरकार से तो कोई उम्मीद इसलिए भी नहीं है क्योंकि वो तो ख़ुद ही अब इन कंपनियों पर निर्भर होती जा रही है। बचाना ख़ुद ही पड़ेगा।

Friday, July 25, 2008

कहाँ से चली बात कहाँ आ गई

संसद मैं पिछले दिनों जो हुआ उसे देख कर कोई आश्चर्य नहीं हुआ बल्कि लगा कीयह नहीं होता तो आश्चर्य होता आख़िर आप यह भी तो देखें की दाव किस किस के थे। एक तरफ़ अमर सिंघ जैसे प्रतापी तो दूसरी तरफ़ मर्दानी मायावती। परमाणु करार जिस पर सरकार संकट मैं आई वो तो न जाने कहाँ चला गया और केन्द्र मैं आ गई उत्तर प्रदेश की लडाई। हमारे तथाकथित राष्ट्रीय दल उन दलों की कठपुतली बन गए जिनका अस्तित्व उत्तर प्रदेश के बाहर मुश्किल ही कहीं दीखता है। ऐसे मैं संसद मैं नोट दिखाए गए तो क्या आश्चर्य। बस इतना हुआ की जो बातें हम सिर्फ़ सुनते थे उसे पुरे देश ने रियलिटी शो के रूप मैं देख लिया, कई सांसद तो खुश हो रहे होंगे की चलो अब आगे दिक्कत नहीं आयगी। धीरे धीरे यह भी सिस्टम मैं शामिल हो जायेगा। आख़िर कभी तो शुरुआत होनी ही थी। अभी तो लोग शिकयत कर रहे हैं, बाद मैं उन्हें आदत पड़ जायगी और जैसे ले दे कर काम कराने की प्रथा प्रचालन मैं आ गए वैसे ही विशवास मत जैसे मौकों पर सांसदों का रिश्वत लेना और कम मिले या लेते हुए कोई छिपा हुआ कैमरा पकड़ ले तो इमानदारी का चोल ओढ़ कर संसद मैं नोट लहरा देना अक्सर होने लगेगा। तो भविष्य मैं ऐसे कई रियलिटी शो देखने के लिए तैयार रहिये

Friday, July 11, 2008

मजे ऍफ़ एम् के

कल रात अपने मोबाइल पर लंबे समय बाद ऍफ़ एम् सुन रहा था। हमारे जयपुर शहर के ऍफ़ एम् वाले रात मैं दो तीन घंटे के लिए विविध bhaarti हो जाते हैं। पुराने gaane sunaate haain haanlaki gaane उतने पुराने नहीं होते जितने विविध bhaarti sunata है, लेकिन इतने jarur होते हैं की कुछ puraani यादें ताज़ा हो जाती हैं कमी सिर्फ़ एक ही लगती है की gaane बनाने वालों के बारे मैं आर je कुछ नहीं btaate। यह जानकारी to सिर्फ़ vivdh भरती पर ही मिलती है लेकिन वहां तरीका vahi बरसों purana है जो ऍफ़ एम् waalon की हमेशा चलने वाली chatar patar के बीच कई बार बहुत अच्छी लगती है। मैं यह to नहीं kahta की ऍफ़ एम् वाले भी विविध bhaarti हो jaayen लेकिन नए अंदाज़ मैं gaane bannae waalon की जानकारी to दे ही सकते हैं कई बार बहुत जरुरत mahsoos होती है खासकर tab जब की कोई purana gaana सुन रहे हों और फ़िल्म का नाम ही याद करने मैं dimag khap जाए। या gaane के बोल इतने अच्छे hoan की लिखने वाले का नाम jaanana jaruri हो जाए। जैसे कल हुआ जब film गीत gaata चल का title गीत सुन रहा था। गीत इतने अच्छी हिन्दी मैं है की सोचता रहा किसने लिखा होगा, लेकिन javaab कैसे मिले। gaana to ऍफ़ एम् पैर सुन रहे थे। to भइया ऍफ़ एम् waalon लिखने वाले bnanaane wale को भी याद कर लिया करो to आपको sunne का मज़ा dugna हो jaaye

Wednesday, May 14, 2008

मेरे शहर मैं धमाके

कल शाम मेरा शहर जयपुर धमाकों से काँप उठा अब तक आतंकवादी नज़रों से बचा रहने वाला यह अमनपसंद शहर भी अब उन शहरों की लिस्ट मैं शामिल हो गया जो आतंकवादियों के निशानोंपर है जयपुर के बारे हम कभी सोच भी नहीं पाते थे की यहाँ कभी ऐसा भी कुछ हो सकता है दंगे का दंश यह शहर झेल चुक्स है लेकिन इसके बाद यहाँ जो कुछ हो रहा था उसे देख कर लगता था की अब लोगों की चिंता और बातों से ज्यादा अपनी जेब को लेकर है और जहाँ ऐसा होता है वहां लोगों को दंगे जैसे मामले बहुत फिजूल लगने लगते हैं
लेकिन मंगलवार को जो कुछ हुआ उसने एक दूसरा ही डर पैदा कर दिया जिसके बारे मैं सच पूछो टू यहाँ के लोगों ने ना कभी सोचा था और ना वैसी सतर्कता बरती थी इस शहर के लोगऐसे मामलों मैं बहुत ज्यादा सजग नहीं है शहर की चौराहे रात रात भर जागते रहें हैं रात के तीन बजे भी आपको इस शहर के बड़े चौर्हों पर चाय मिल जाती थी, लेकिन अब शायद यह मजार इस शहर मैं देखने को नहीं मिलेगा अब तक एक अमपसंद शहर की तरह यहाँ की सुरक्षा कर रही पुलिस अब कुछ ज्यादा सजगता बरतेगी और इस सजगता मैं इस शहरका मूल स्वाभाव खो जायगा

Saturday, January 5, 2008

ab phir shuru karunga

हाँ दोस्तों अब फिर लिखा करूँगा इस ब्लोग पर। बीच मैं न जाने क्यों नहीं लिख पाय, हालांकि बहुत कुछ ऐसा हुआ जिस पर लिखा जा सकता था। खैर नया साल है और नए साल का प्रण है कि अब आपको झिलाता रहूंगा।
नया साल आया और पूरी दुनिया मैं जश्न मन। जयपुर मैं सर्दी पूरे जोर पर थी इसलिय अपन तो रजाई मैं रहे और टीवी दस बोरिंग प्रोग्राम देखते हुए नए साल मैं घुसे। इन प्रोग्रामों को देखते हुए पता नहीं क्यों दूरदर्शन की याद आ गयी। उस जमाने मैं दूरदर्शन के नए साल दस प्रोग्राम का इन्तजार रहता था । हालांकि प्रोग्राम मैं दम नहीं होता था, लेकिन जब आज के इन चैनलों के प्रोग्र्मा देखतें हैं तो लगता है कि वो ही ज्यादा बेहतर थे। कम से कम कुछ सादगी और अपनापन तो लगता था। इनमें तो फूहड़ हसीं और नाच गाने के अलावा कुछ मिलता ही नहीं है। प्रोग्राम भी ऐसे जो कई बार दिखाए जा चुके हैं। इन्हें देख कर इतनी कोफ्त हुई कि जैसे ही नया साल आया मैंने टीवी बंद किया और सो गया। खुद कोप कोसा भी कि यह घटिया प्रोग्राम देखने से तो अच्छा था कि कुछ अच्छा पढ़ लेते और किसिस किताब के साथ नए साल मैं घुसते। अगले साल याद रखूँगा।